क्यों महर्षि वाल्मीकि को वाल्मीकि कहा जाता है? जानिए इसका सही जवाब क्या है?

महर्षि वाल्मीकि का जन्म सहस्त्र वर्ष पूर्व हुआ था।वह कब और कहां जन्मे इस बारे में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। बचपन में महर्षि वाल्मीकि का नाम'रत्नाकर' था। उन्होंने कठोर तपस्या की। तपस्या में वह इतने लीन हो गए कि उनके शरीर पर दीमक ने वल्मिक बना लिया। इसी कारण
 उनका नाम वाल्मीकि पड़ा।वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे स्थित आश्रम में रहकर उन्होंने कई रचनाएं की।प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण की भी रचना वाल्मीकि ने यहीं पर की थी। रामायण में वर्णित कथा जैसा सुंदर, स्पष्ट और भक्ति भावपूर्ण वर्णन दूसरे कवि के काव्य में नहीं मिलता है। वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का आदि कवि माना जाता है। रामायण को त्रेता युग का इतिहास ग्रंथ भी माना जाता है। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पुरुषोत्तम श्री राम के पुत्रों लव कुश का यही पर जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने पुरुषोत्तम श्री राम के पुत्र लव और कुश को शिक्षा दीक्षा दीया, और उन्होंने अपने ज्ञान और शिक्षा कौशल से लव-कुश को अल्पायु में ही ज्ञानी बनाया और युद्ध कला में पारंगत कर दिया था। वाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण में सात कांड हैं।उन्होंने अपनी इस रचना में राम के चरित्र का ही नहीं बल्कि उस समय की समाज की स्थिति, सभ्यता, शासन-व्यवस्था तथा लोगों के रहन-सहन का भी वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि ने लव-उसको अपने ज्ञान और शिक्षा से इतना ज्ञानी बना दिया और युद्ध कला में इतना पारंगत बना दिया कि श्री राम की अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा जब महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पहुंचा तो लव-उसने उसे बाध लिया। इसके बाद उन्होंने
लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न की सेना को पराजित कर अपनी असीम शक्ति तथा प्रतिभा का परिचय दिया। इसके साथ साथ उन दोनों ने श्रीराम को भी अपनी वीरता और बुद्धि से हतप्रभ कर दिया। उनका यह पराक्रम महर्षि वाल्मीकि की शिक्षा-दीक्षा का ही परिणाम था। एक बार की बात है अयोध्या के समीप तमसा नदी के किनारे वाल्मिकी तपस्या करते थे। वह प्रतिदिन प्रातः स्नान के लिए नदी जाया करते थे। एक दिन जब वह स्नान करके लौट रहे थे, तो उन्होंने एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को क्रीड़ा करते देखा। वाल्मीकि मुंह धो कर देख ही रहे थे कि एक व्यास ने उन पर तीर चला दी जिसके कारण एक पक्षी की मृत्यु हो गई। दूसरा पक्षी पास के वृक्ष पर बैठकर अपनी मरी हुई साथ ही को देख कर विलाप करने लगा। इस करुण दृश्य को देखकर वाल्मीकि के मुख से सोता है कविता का स्रोत फूट पड़ा जिसका अर्थ था " हे व्याध ! तुमने काम में मोहित कराओ पक्षी के जोड़े में से जो एक को मार दिया , इसलिए तुम चीर स्थाई प्रतिष्ठा को नहीं प्राप्त कर सकोगे। महर्षि वाल्मीकि कवि, शिक्षक, ज्ञानी तथा त्रिकालदर्शी ऋषि थे।रामायण ग्रंथ जो इन्होंने रचा था वह भारत का ही नहीं बल्कि सारे संसार की अनमोल कृत्य है। महर्षि वाल्मीकि को उनकी नीति, शिक्षा, दूरदर्शिता तथा कृतियों के कारण आज भी आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है।
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